भारत एक ऐसा देश है जिसमें एक राज्य से दूसरे राज्य तक जाने पर भाषा के साथ साथ मौसम भी अलग हो जाता है। मौसम के आधार पर ही विभिन्न राज्यों में अनेक तरह की फसलें बोई और काटी जाती है। अगर बात करें उत्तर प्रदेश की तो यहाँ की मुख्य फसलें गन्ना, गेहूं और धान हैं। गन्ने की खेती की वजह से ही उत्तर प्रदेश को चीनी का कटोरा भी कहा जाता है। गन्ने की फसल गेहूँ की फसल कटने के तुरंत बाद अप्रैल और मई के महीने में बोई जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि गर्मी के मौसम के तुरंत बाद बरसात का मौसम शुरू हो जाता है और बरसात का मौसम गन्ने की खेती के लिए अमृत की तरह होता है। इसी मौसम में गन्ने की अच्छी बढ़त होती है। विशेषज्ञों की मानें तो जितनी ज़्यादा बारिश होती है उतना ही गन्ना अच्छा होता है अर्थात् गन्ने की गुणवत्ता बढ़ जाती है। यही कारण है कि गन्ने की फसल को मई के महीने में लगाया जाता है ताकि सर्दी आने तक उसे काटा जा सके। जब गन्ने की फसल को काटा जाता है उसके तुरंत बाद ही गेहूँ की फसल की बुवाई शुरू कर दी जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि शुरुआत में गेहूं की फसल के लिए ऐसे मौसम की ज़रूरत होती है जिसमें सूरज की तेज़ धूप फसल पर न पड़े। इस पर किसानों का कहना है कि जब गेहूँ के बीज से पौधा निकलता है तो वह बहुत कमज़ोर होता है यानि वह तेज़ धूप और बारिश बर्दाश्त नहीं कर सकता है और ऐसा मौसम सिर्फ जनवरी के महीने में होता है। इसलिए गेहूँ की फसल सर्दी के मौसम में लगाई जाती है। किसान ये भी कहते हैं कि गेहूँ की खेती के लिए शुरू में हल्की बारिश की ज़रूरत होती है लेकिन उसके बाद जब गेहूँ पकने लगते हैं तो बारिश गेहूँ की फसल के लिए ज़हर का काम करती है। कभी - कभी तो बिन मौसम बारिश की वजह से गेहूँ की फसल को काफी नुकसान भी हो जाता है। लेकिन अक्सर देखा गया है कि मार्च और अप्रैल के महीने में बारिश नहीं होती है और गेहूँ की फसल को पकने का अच्छा समय मिल जाता है। फसल पकने के बाद अप्रैल के अंत तक फसल को काट लिया जाता है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में कुछ किसान धान की फसल भी उगाते हैं। धान की फसल को भी मौसम के हिसाब से ही बोया जाता है। धान की फसल को गर्मी के मौसम में बोया जाता है। वैसे तो धान की फसल के बुवाई का समय विभिन्न किस्मों पर निर्भर होता है लेकिन 15 मई से 20 जून के बीच का समय इसके लिए सही माना गया है। धान की खेती में जब धान का पौधा अच्छी तरह जड़ें पकड़ लेता है उस वक़्त उसे बारिश की ज़रूरत होती है और धान की बुवाई का समय ऐसा है कि जब तक धान का पौधा बड़ा होता है तब तक बरसात का मौसम आ जाता है। बरसात के बाद सर्दी से पहले सितंबर के महीने में धान की फसल पक कर तैयार हो जाती है। फसल पकते ही इसे काट लिया जाता है। इस तरह कह सकते हैं कि मौसम हमारी जिंदगी में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। लेकिन हम इस तरफ कभी ध्यान नहीं दे पाते हैं। ये भारत के एक राज्य की खेती के बारे में है , इसी तरह भारत के विभिन्न राज्यों में अलग अलग तरह की खेती की जाती है जो कि पूरी तरह मौसम पर निर्भर होती है और सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया के सभी देशों में खेती के लिए मौसम की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। कभी-कभी हम देखते हैं कि प्याज़ के दाम आसमान छूने लगते हैं। ऐसा क्यों होता है आपने कभी सोचा है? ये सब मौसम के कारण होता है। आपने देखा होगा कि कभी-कभी बहुत से राज्यों में ज्यादा बारिश की वजह से बाढ़ आ जाती है, बाढ़ आने या ज़्यादा बारिश होने का सबसे बड़ा नुकसान सब्ज़ियों की पैदावार पर पड़ता है। यही कारण है कि कभी-कभी प्याज़ या दूसरी सब्ज़ियों के दाम इतने ज़्यादा बढ़ जाते हैं।
क्या है भारत में गधों की संख्या कम होने का कारण?
क्या आप जानते हैं भारत में लगातार कम हो रही है गधों की संख्या। अगर यही हाल रहा तो विशेषज्ञों के अनुसार आने वाले 20 सालों में हम इस प्रजाति को चिड़ियाघर जैसी जगहों पर भी नहीं देख पाएंगे। अब सवाल ये है कि भारत में लगातार गधों संख्या कम क्यों हो रही है? उसका एक जवाब तो ये है कि भारत में गधों की कालाबाज़ारी पर किसी का कोई खास ध्यान नहीं है और दूसरा ये कि भारत में गधों की उपयोगिता ना के बराबर हो गई है। यही वजह है कि भारत में गधों की संख्या लगातार घट रही है।
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