भारतीय क्रिकेट में एक नई पहचान बना चुका आई पी एल आज बड़ी चुनौती बन चुका है। जब आई पी एल शुरू हुआ तो लगा था कि क्रिकेट का ये नया अंदाज़ क्रिकेट की दिलचस्पी मे इज़ाफ़ा करेगा, लेकिन हुआ ये कि ये आज के नौजवानों के लिए नशा बन गया है। बड़े बड़े कारोबारी बड़ी रक़म देकर खिलाडियों को खरीदते हैं जिससे वो बड़ा मुनाफा कमाते हैं, लेकिन वहीं दूसरी तरफ नौजवानों को सट्टे जैसी लत लगाई जा रही है। कमाल की बात ये है कि सट्टे जैसी ग़ैर क़ानूनी चीज़ को लाइसेंस देकर क़ानूनी बनाया गया है। जिसका बड़े बड़े स्टार और खिलाडी इश्तेहार के ज़रिये प्रचार भी कर रहे हैं। इससे ये भी अंदाज़ा होता है कि उन स्टार और खिलाडियों को भी फायदा हो रहा है जो ऐसे इश्तेहार का हिस्सा बन रहे हैं। यहाँ अगर किसी का नुकसान हो रहा है तो वो है आज का नौजवान जो आई पी एल जैसे खेल मे सट्टा लगाकर अपना वक़्त और पैसा दोनो बर्बाद कर रहा है। यही वजह है कि जिस वक़्त आई पी एल मैच शुरू होता है उस वक़्त आज का नौजवान अपना काम काज छोड़कर टी वी के सामने चिपककर बैठ जाता है। अब सवाल ये है कि इसमें सट्टे को बंद क्यों नहीं किया जा रहा है? ये तो खेल है और खेल में सट्टे का क्या काम? इन सभी सवालों का एक ही जवाब है वो ये कि इसमें बड़े बड़े सट्टा कारोबारियों का हाथ है। यही वजह थी कि आई पी एल को तब भी बंद नहीं किया गया जब कोरोना ने पूरे हिंदुस्तान मे तबाही मचाई हुई थी। लोग बेरोज़गार हो चुके थे और भूख की वजह से मर रहे थे। बल्कि उस वक़्त भी इसे हिंदुस्तान मे न कराकर बाहर के मुल्को मे कराया गया। ताकि उन कारोबारियों को नुकसान न हो जो इसकी आड़ में सट्टे का कारोबार चलाते हैं। अगर यही हाल रहा तो नौ जवान ऐसे ही अपनी ज़िंदगी बर्बाद करता रहेगा। इसलिए खेल को खेल ही रहने दिया जाए तो बेहतर है। और सरकार को भी चाहिए कि इस तरफ़ भी थोड़ा ध्यान दें।
क्या है भारत में गधों की संख्या कम होने का कारण?
क्या आप जानते हैं भारत में लगातार कम हो रही है गधों की संख्या। अगर यही हाल रहा तो विशेषज्ञों के अनुसार आने वाले 20 सालों में हम इस प्रजाति को चिड़ियाघर जैसी जगहों पर भी नहीं देख पाएंगे। अब सवाल ये है कि भारत में लगातार गधों संख्या कम क्यों हो रही है? उसका एक जवाब तो ये है कि भारत में गधों की कालाबाज़ारी पर किसी का कोई खास ध्यान नहीं है और दूसरा ये कि भारत में गधों की उपयोगिता ना के बराबर हो गई है। यही वजह है कि भारत में गधों की संख्या लगातार घट रही है।
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