भ्रष्टाचार की एक बड़ी वजह धैर्य का ना होना...
हम अक्सर कहते हैं कि भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। लेकिन हम ये कभी नहीं सोचते कि ये क्यों बढ़ रहा है। इसकी क्या वजह है?
जब वजह जानने के लिए मैंने इसपर अध्ययन किया, तो मैंने पाया कि भ्रष्टाचार की एक बड़ी वजह लोगों के अंदर धैर्य की कमी है। क्योंकि लोग धैर्य से काम नहीं लेना चाहते हैं। सबको जल्दी है। कोई लाइन मे लगकर इन्तेज़ार नहीं करना चाहता, मैं पिछले काफी वक्त से देख रहा हूँ बैंक मे जाता हूँ तो वहाँ पर लोग दूसरे तारीके से ही भ्रष्टाचार बढ़ा रहे हैं। दर-असल
मैं एक बैंक के अंदर लाइन मे खाड़ा था तभी मैंने देखा कि बैंक मे लंच का वक्त हो गया। बैंक के गार्ड ने दरवाज़े को लॉक कर दिया। तभी अचानक बाहर से एक शख़्स की आवाज़ आती है कि भाई गेट खोल दे। गार्ड मना कर देता है, क्योंकि उसे मैनेजर ने पहले से ही आदेश दे रखे हैं कि लंच के वक्त किसी को भी बैंक के अंदर मत आने देना लेकिन वो शख़्स दोबारा बोलता है कि भाई गेट खोल दे। मैं चेयरमैन का आदमी हूँ। अब गार्ड के लिए परेशानी खड़ी हो जाती है। क्योंकि अगर वो गेट खोलता है तो मैनेजर नाराज़ हो जाएगा और नहीं खोलता है तो चेयरमैन का आदमी, चेयरमैन से उसकी शिकायत कर देगा। तभी अंदर से मैनेजर की आवाज़ आती है कि भाई खोल दे गेट। तब मैंने अंदाज़ा लगाया कि भ्रष्टाचार सिर्फ धन का लेन-देन ही नहीं है बल्कि भ्रष्टाचार की एक शक्ल ये भी है कि लोग अपने ओहदे का फ़ायदा उठाकर भी भ्रष्टाचार करते हैं। इसी तरह मैं एक बार अपना जाती प्रमाण पत्र बनवाने के लिए तहसील मे गया। मैंने तहसील मे बैठे पटवारी से कहा कि भाई मेरा जाती प्रमाण पत्र बनना है और मुझे थोड़ा जल्दी चाहिए आप ये बता दीजिए कि कितना वक्त लगेगा? उसने कहा कि आप फॉर्म भरकर बाहर काउन्टर पर जमा कर दीजिए और जितना जल्दी चाहिए उस बन्दे को बता देना जिसे फॉर्म जमा करोगे। ख़ैर मैं उस बन्दे के पास पहुँचा। उससे फॉर्म वग़ैरह लेकर भर दिया। उसके बाद उसे मैंने ऐसे ही बोल दिया कि भाई एक हफ्ते मे मिल जाए तो मेरे लिए आसानी हो जाएगी। उसने कहा कि भाई मिल तो जाएगा एक ही हफ्ते मे लेकिन थोड़ा चाय पानी का ख़र्च लगेगा। मैंने कहा कि भाई एक हफ्ते ही का तो वक्त लगता है अब इसमे चाय पानी के ख़र्च वाली बात कहाँ से आ गई तब उस शख़्स ने मुझे ये कहकर बाहर कर दिया कि भाई जब आना होगा आ जाएगा। लेकिन एक हफ्ते मे नहीं आएगा अब ये, और जाओ यहाँ से। इससे मुझे अंदाज़ा हो गया कि सरकारी कर्मचारियों की आदत हम लोगों ने ही ख़राब की है। उन लोगों ने मुझे ये सब इसलिए नहीं बोला कि मुझे जल्दी थी बल्कि इसलिए बोला क्योंकि सबको जल्दी है मेरी ही तरह और इसीलिए उन्हें रिश्वत लेने का मौक़ा मिल जाता है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हमेशा सरकारी कर्मचारी ही ग़लत नहीं होते हैं कभी कभी हम भी उन्हें ग़लत करने पर मजबूर कर देते हैं। हम अक्सर एक ही पहलू देखते हैं कि सरकारी कर्मचारी रिश्वत लेते हैं लेकिन ये नहीं देखते कि उन्हें ऐसा बनाया किसने? हमने क्योंकि है सब चाहते हैं कि हमारा काम सबसे पहले हो उसके लिए चाहे हमे कुछ भी करना पड़े हम कर जाते हैं। ये नहीं सोचते कि इसका क्या asar होने वाला है। मैं ये नहीं कहता कि सरकारी कर्मचारियों की ग़लती नहीं है वो भी ग़लत करते हैं। उन्हें भी ईमानदार रहना चाहिए लेकिन हमे भी थोड़ा सोचना चाहिए कि कहीं जल्दी के चक्कर मे हम एक ऐसे समाज का तो निर्माण नहीं कर रहे हैं जिसकी बुनियाद ही भ्रष्टाचार पर टिकी हो....
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